धोळी रुई फैल सी घुळ-घुळ भूरी होय।

वरस घटा वण, वादळी मुरधर कानी जोय॥

भावार्थ:- सफेद रुई के फाऐ सी तू घुल-घुल कर भूरी हो जाती है। बादली, मरुधरा की तरफ देखकर घटा बन बरस पड़ो।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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