धोळी रुई फैल सी घुळ-घुळ भूरी होय।
वरस घटा वण, वादळी मुरधर कानी जोय॥
भावार्थ:- सफेद रुई के फाऐ सी तू घुल-घुल कर भूरी हो जाती है। बादली, मरुधरा की तरफ देखकर घटा बन बरस पड़ो।