आयी नेड़ी मिलण नै, तीतरपंखी रेख।

हरखी सारी मुरधरा, चांद-जळैरी देख॥

भावार्थ:- तीतरपंखी रेखा के रूप में मिलने के लिये तू समीप गई है और चांद-जलहरी को देख कर सारी मरुधरा हर्षित हो उठी है।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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