आयी नेड़ी मिलण नै, तीतरपंखी रेख।
हरखी सारी मुरधरा, चांद-जळैरी देख॥
भावार्थ:- तीतरपंखी रेखा के रूप में मिलने के लिये तू समीप आ गई है और चांद-जलहरी को देख कर सारी मरुधरा हर्षित हो उठी है।