चुप मत साधै वादळी कहदे सागण वात।

मैं लखली तेरी कळा सैण सिखायी घात॥

भावार्थ:- बादली, चुप्पी मत साधो। सच्ची बात कहदो। मैंने तुम्हारी कला पहचान ली है। यह घात साजन की सिखाई हुई है।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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