खग-कूंची जादू करै, पिव रै हाथ रहंत।

अरियां तन लागै अठै, ताळा सुरग खुलंत॥

वीर के हाथ की तलवार के अद्भुत कार्य लक्ष्य में रखकर वीरपत्नी कहती है कि तलवार रूपी चाबी प्रियतम के हाथ में रहकर जादू का काम करती है अर्थात् आश्चर्ययुक्त कार्य करती है। वह तलवार रूपी चाबी लगती तो है इस संसार में शत्रुओं के शरीरों पर, परन्तु उससे ताले खुलते हैं स्वर्ग के।

स्रोत
  • पोथी : महियारिया सतसई (वीर सतसई) ,
  • सिरजक : नाथूसिंह महियारिया ,
  • संपादक : मोहनसिंह ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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