हेली धव चढिया हमैं, नीला हंदी पीठ।
परदळ वाळा पुरखड़ा, होसी रंग मजीठ॥
नीलाश्व के सहयोग से उत्पन्न अपने प्रियतम की प्रहार-प्रचंडता के कारण रक्त-प्रवाह की अत्यधिकता को लक्ष्य में रख कर वीरांगना अपनी सखी से कहती है कि हे सखि! प्रियतम अब नीलाश्व की पीठ पर सवार हो गए हैं। अतः शत्रु अवश्य ही मजीठ रंग के हो जायँगे। उनके प्रहार के कारण शत्रु पूर्णतया क्षत-विक्षत हो जायँगे।