बिज्जुलियाँ निळज्जियाँ, जळहर तूँ ही लज्जि

सूनी सेज विदेस पिव, मधुरै मधुरै गज्जि ।।

भावार्थ:- बिजलियाँ तो निर्लज्ज हैं। हे जलधर, तुम तो लज्जित हों। मेरी शय्या सूनी है। मेरा प्यारा विदेश में है और तुम ऐसे मधुर मधुर शब्द करते हुए गरज रहे हो।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी भाषा और साहित्य ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : डॉ. मोतीलाल मेनारिया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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