भर चोघड़ चालै घरे जठै तिसाया जीव।

ल्यातां ल्यातां नीवड़ै बरतै जळ ज्यूं घीव॥

भावार्थ:- दूर-दूर से पानी की चोघड़ (चार घड़े) ऊंटों पर लाद कर घर की ओर आते हैं जहां प्राणी पानी की प्रतीक्षा में बैठे रहते हैं। पानी को घी की तरह थोड़ा-थोड़ा काम में लेने पर भी वह लाते-लाते ही खत्म हो जाता है।

स्रोत
  • पोथी : लू ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : चतुर्थ
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