आभो धररायो अबै आयो सावण मास।

पूरै मन सूं पूरसी आज धरा री आस॥

भावार्थ:- आकाश धर्रा रहा है, अब सावन का महीना गया है। आज पूरे मद से यह धरा की आशा पूर्ण करेगा।

स्रोत
  • पोथी : बादळी ,
  • सिरजक : चंद्र सिंह बिरकाळी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : छठा
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