थार मरुस्थल से घिरा बीकानेर का जूनागढ़ किला धान्वन दुर्ग की श्रेणी में आता है। हालाँकि बीकानेर के पुराने गढ़ की नींव तो बीकानेर के संस्थापक राव बीकाजी ने वि. संवत् 1542 में रखी थी। लेकिन इस किले का निर्माण बीकानेर के शासक रायसिंह ने करवाया था। दयालदास की ख्यात में हमें यह उल्लेख मिलता है कि नये गढ़ की नींव मौजूदा पुराने गढ़ के स्थान पर ही भरी गयी थी, अतः संभव है इसी कारण इसे जूनागढ़ कहा गया। रायसिंह ने मुगलों की तरफ से गुजरात, काबुल के अनेक युद्ध अभियानों में भाग लिया व जरुरी भूमिकाएं निभाईं। कुछ इतिहासकारों का यह मानना है कि बीकानेर के राजाओं द्वारा मुगलों की अधीनता स्वीकार करने और निकट सम्बन्ध की वजह से इस किले पर कोई बड़े हमले नहीं हुए।
बीकानेर के संघर्ष बाहर के लोगो से अधिक यहीं के लोगो से रहे;जिसकी फेहरिश्त लम्बी है। 1733 ई. में नागौर के बखतसिंह ने जोधपुर महाराजा अभयसिंह के साथ एक विशाल सेना लेकर बीकानेर पर चढ़ाई की। इस सेना ने जूनागढ़ को घेर लिया और लगभग चार महीने तक संघर्ष चला और आखिर में यह विफल हुआ। लेकिन इस विफलता के बावजूद बखतसिंह ने दूसरी बार 1743 ई. में बीकानेर पर चढ़ाई की। इस बार भी तमाम वजहों से वह निराश होकर वापस लौट गया। इस तरह तमाम सजातीय संघर्षों से यह किला गुजरता रहा। किले की प्राचीर बहुत सुदृढ़ है। लगभग 1078 गज की परिधि में फैले इस दुर्ग में 37 विशाल बुर्जे निर्मित हैं। जूनागढ़ की ख्याति महलों की भव्यता को लेकर भी है, मुख्य महलों में रंग महल, कर्ण महल, फूल महल, अनूप महल, चन्द्र महल, छत्र महल, लाल निवास, सरदार निवास रायसिंह का चौबारा, आदि उल्लेखनीय हैं। जनानी ड्योढ़ी से लेकर त्रिपोलिया तक महलों की एक लम्बी श्रृंखला सुन्दर दिखाई पड़ती है।
किले के भीतर जाने के लिए दो प्रमुख प्रवेश द्वार हैं। जिनमें एक का नाम कर्णपोल है तथा दुसरे दरवाजे का नाम चाँदपोल है। इन दोनों दरवाजों के अलावा किले में पाँच आन्तरिक द्वार हैं जो दौलतपोल, फतेहपोल, रतनपोल, सूरजपोल और ध्रुव पोल कहलाते हैं। सूरजपोल के पीछे यहाँ एक गणेशजी का छोटा-सा मन्दिर है। यहीं इतिहास प्रसिद्ध वीरों जयमल मेड़तिया और उनके बहनोई रावत पत्ता मूर्तियाँ स्थापित हैं। ये राजप्रासाद राजस्थान की राज-शाही संस्कृति के प्रतीक हैं। जूनागढ़ के इन महलों में कई जगह काँच की पच्चीकारी और सुनहरी कलम का बहुत सुन्दर काम हुआ है। भव्य अनूप महल जहाँ बीकानेर के राजाओं का राजतिलक होता था— के बारे में डॉ.करणीसिंह ने लिखा है—“बीकानेर के किले में अनूप महल जिसमें सोने की कलम से काम किया हुआ है एक उत्कृष्ट कृति है और अपने प्रकार के सर्वश्रेष्ठ नमूनों में से एक है।’’ जूनागढ़ में दुर्लभ प्राचीन वस्तुओं, देव प्रतिमाओं, पुराने भित्ति चित्र तथा विविध प्रकार के पात्रों तथा फारसी व संस्कृत में लिखे गये हस्तलिखित ग्रन्थों का बहुत समृद्ध संग्रहालय है। किले के भीतर महाराजा डूंगरसिंह द्वारा निर्मित एक ऊँचा और भव्य घंटाघर है। जलापूर्ति के लिए रामसर और रानीसर दो अथाह जलराशि वाले कुएँ उल्लेखनीय हैं।
यह भव्य दुर्ग इतिहास, कला और संस्कृति की बहुमूल्य धरोहर को संजोये हुए है।