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ग़ज़ल
12
हिये में हेत उपजायां मिनख री जात परखीजै
मोहम्मद सदीक
कान उघाड़ा तो भी बोळो
आनन्द प्रिय
कुंटा टुट्या पड्या है घर रा, कठै लगावां ताळा आज
विद्यासागर शर्मा
अबलावां रो अपहरण, डाकुआं री आड़ में
प्रदीप शर्मा ‘दीप’
भासण देणो है आसान
पूजाश्री
आओ खेलां खेल, भायला
श्याम गोइन्का
आपरी माड़ी सी बा बाण, म्हानै ठा है
भंवर कसाना
उगतो सूरज राम-राम सा
प्रदीप शर्मा ‘दीप’
किरकांटियो आपरो रंग देखावै
सुशील एम.व्यास
सुण मेघां री गाज मोरिया
गोकुल खिड़िया
थोथी रीत निभार्या लोग
प्रदीप शर्मा ‘दीप’
रस्तो भूल्या म्हारै घर रो, पै’लां आवण वाळा लोग
विद्यासागर शर्मा