रात पर गीत

उजाले और अँधेरे के प्रतीक

रूप में दिन और रात आदिम समय से ही मानव जिज्ञासा के केंद्र रहे हैं। कविताओं में रात की अभिव्यक्ति भय, आशंका और उदासी के साथ ही उम्मीद, विश्राम और शांति के रूप में हुई है। इस चयन में उन कविताओं को शामिल किया गया है; जिनमें रात के रूपक, प्रतीक और बिंब से जीवन-प्रसंगों की अभिव्यक्ति संभव हुई है।

गीत5

मतवाली जोगण

किशन लाल वर्मा

रात घणेरी प्यारी

किशोर कल्पनाकान्त

सारी-सारी रैन

धनराज दाधीच

दो-दो को जोड़ो

लक्ष्मीनारायण मालव

रंगीली बरसात

किशन लाल वर्मा