सबद की सांगि लगी जेहि आंगि, सु मारहु वो सोइ स्वादहि जानै।

ज्ञान की चोट रही नहिं ओट, हो हाथ लहीय पर्‌यूं पहिचानै॥

सुबुद्धि को सेल गुरु गहि मेल, हो मारि लियो महा चंचल पानै।

पर्‌यो सोइ घाव गिर्‌यो मन राव, हो रज्जब पैड़ै छांड़हि थानै॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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