सबद की सांगि लगी जेहि आंगि, सु मारहु वो सोइ स्वादहि जानै।
ज्ञान की चोट रही नहिं ओट, हो हाथ लहीय पर्यूं पहिचानै॥
सुबुद्धि को सेल गुरु गहि मेल, हो मारि लियो महा चंचल पानै।
पर्यो सोइ घाव गिर्यो मन राव, हो रज्जब पैड़ै न छांड़हि थानै॥