स्यांम-सरीर लसै पट पीत, मनौं घन-दामनि रूप भयौ है।
बीरा बन्यौं मुख सांथ मनौहर, यौं उमह्यो अनुराग नयौ है॥
मोर की चंद्रिका मोहै महा मन, अंग-प्रकासन तै उगयौ है।
चंद से आंनन पैं दिये खौरि, सुचंदन की चित चोरि लयौ है॥