जे पर सूर लहै सु महूरत, साहिब संग तहां सिर डारै।
बाहर देखि खरौ तेहि ठाहर, सूर संग्राम मरै अरु मारै॥
सरीर कौ सोच करै न डरै कछु, आरनि माहिं अर्यूं ललकारै।
हो रज्जब राम कै काज तजै, तन ताहि निरंजन नाथ बधारै॥