सिंहिनी सुमति काढ़ि जे हलै जुगति चाढ़ि,
बैन बान धाई बाढ़ि सतगुर साहई।
कपट करम फोरि कुमति करी कौ तोरि,
नीकस्यो पैली जीवोरि ऐसे कसि बाहई॥
निज ठौर लागौ तीर लायो जी बमेकी बीर,
लागत रही न धीर पानीहूं न चाहई।
ऐसी विधि मार्यो बान तन मन कियो घान,
अंतरि बेध्यो जु प्रान रज्जब अज्जब चोट रह्यो खेति नाहई॥