परी झर माहिं निकसत नाहिं, बिना बरबाह कहौ कहा कीजै।

होसा उसास रहै तिस पास, जु देखि निरास नहीं धर धीजै॥

पल पल पीर सु होत गंभीर, धरै कहा धीर छिन छिन छीजै।

हो रज्जब रट्ट भई जरि मट्ट, जु पीय परट्ट दरस दीजै॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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