भजै संसार लगै पुकार होइ करार, लहै बिचार हो नांव अपार सु एक लहैगो।

पंखी हजार उड़ैं सब डार सु आवनहार, रहै करार अकासि अनल ज्यूं एक रहैगो॥

चले बहु संग सु देखन जंग आवै, व्है मूरति भंग सती ज्यूं सलौ कोइ एक गहैगो।

चले बहु पूर सु बाजहिं तूर गये भग भूर, रहे रन सूर हो रज्जब राम कोइ एक गहैगो॥

स्रोत
  • पोथी : रज्जब बानी ,
  • सिरजक : रज्जब जी ,
  • प्रकाशक : उपमा प्रकाशन, कानपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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