प्यास लगी गज पीवण गो जळ, मांह धस्यौ तब तंत्र बंधायौ।
छूट सनेह कुटंब गये, बळहीण भये गज अंत लखायौ।
एक रंकार उचारत ही खगराज तजे गजराज बचायौ।
ईसरदास की बेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥