ईसरदास बोगसा
'ईस-आराधना' नांव री चावी भक्ति रचना रा सिरजण करियो पण नांव साम्यता रै कारण रचना ईसरदासजी बारहठ रै नांव मंडीजगी अर असली कवि प्रसिद्धि कोनी पा सकियो।
'ईस-आराधना' नांव री चावी भक्ति रचना रा सिरजण करियो पण नांव साम्यता रै कारण रचना ईसरदासजी बारहठ रै नांव मंडीजगी अर असली कवि प्रसिद्धि कोनी पा सकियो।
भूख घणी रिवदास तहाँ
ब्याध कहा पुन जेण करे
दैत विरोचन खोस लियौ स्रुग
दुक्ख दुसासन चीर उतारन
घोर भयो जुध इम्रत के हित
ग्राह कबंद को पार किये
हौ सुगणा किरतार धनी
हिरणाख भयौ बलवान अति
ईसर भाद्रेस प्रकास
जात करात अनात अली
काढ कुंवेर कूं लंक लई
कैरव पंडव जुद्ध जुरै
कोटि अनंतहसंत भये
नांम प्रताप कटै भव बंधन
पाप सजं अजमेल दुजंतह
पतोत पावन व्रिद्द तेरा
पूत कुंवेर कीदो जळ क्रीड़त
प्यास लगी गज पीवण गो जळ
राज तजे बनवास सजे धुव
संत कबीर तणै हित कारण
सात दिनां नह चंद उगौ
ता लघु भ्रात करी तपस्या
ता सुत भो बळराज बली
ताह निवाज के राज दियौ
उदध से निकसे घट अम्रत
वीस हजार चली सविसी नृप
विष्णु करे अज संभु करे
वृज्ज वचाय लिये कर धार के