Anjas

ईसरदास बोगसा

  • 1855-1916
  • Marwar

'ईस-आराधना' नांव री चावी भक्ति रचना रा सिरजण करियो पण नांव साम्यता रै कारण रचना ईसरदासजी बारहठ रै नांव मंडीजगी अर असली कवि प्रसिद्धि कोनी पा सकियो।

ईसरदास बोगसा रौ परिचय

जन्म: सरवड़ी,भारत

चारण जात में ईसरदासजी नाम रा कई कवि हुया है। दूजै गोत्रां रै टाळ ईसरदास बारहठ नाम रा ई कवि न्यारै-न्यारै समय में हुया है पण ईसरा-परमेसरा रै रूप में विख्यात भक्तकवि ईसरदास बारहठ (भाद्रेस, बाड़मेर) री लोकप्रियता रै कारण ईसरदास नामक किणी पण दूजै कवि री रचना मिळी तो ईसरदास बारहठ री मानण री भूल अज्ञानतावश होवणी शुरू हुई।
इणी कड़ी में भक्तकवि ईसरदास बोगसा, सरवड़ी नै गिणाया जा सकै क्यूंकै इणारी रचना 'ईस आराधना' ई लोगां ईसरदासजी बारहठ री मानण री भूल करी है।
ईसरदास बोगसा आधुनिक काळ रा कवि हा। वै जैड़ा श्रेष्ठ कवि हा वेड़ा इज ऊंचै दरजै रा अर्थ कर्ता अर वक्ता ई हा। नरहरिदासजी बारहठ रचित 'अवतार चरित' जैड़े श्रेष्ठ ग्रंथ रो सटीक अर सारगर्भित अर्थ करण वाळा कवियां में ईसरदासजी बोगसा आगीवणं मानीजै। इण विषय में धूड़जी मोतीसर लिखै-

'अरथ करै कवि ईसरो, वाचै पोथी बंक।
सुणै बोगसा सरवड़ी, आडा वळग्या अंक॥'

ईसरदासजी बोगसा सरवड़ी रा गिरधरदानजी बोगसा रा बेटा हा जिणां रो जलम वि.स. 1908 अर देहांत 1973 वि. में हुयो। ईसरदासजी रामस्नेही संप्रदाय में दीक्षित होय खेड़ापा रामद्वारा में रह्या पण पछै सन्यास त्याग'र ग्रहस्थ में आय गिया।
ईसरदासजी रै देहांत विषय में विजयदानजी बोगसा लिखै

'मिगसर मास तेओतरो, पुनम अर सनीवार।
सुरगा ईसर चालियो, छोड़ कुटुम्ब संसार॥'

ईसरदासजी डिंगल रा सिरै कवि हा पण दुर्जोग सूं आज उणां री एक ही रचना 'ईस आराधना' उपलब्ध है। 32 सवैयां में प्रणीत आ रचना एक प्रकार री भगतमाळ कैई जा सकै, जिणमें कवि भगतां रै चारू चरित्र नै उद्घाटित करता थका ईश्वर रै आगै आपरी दीनता प्रगट करी है।
ईसरदासजी री भाषा सहज अर सरल है-

'सतगुरु हरि सब संत कू, जांचूं जुग कर जोर।
दांन भगत मो दीजिये, मेटो अवगुण मोर॥'

'हिरणाख भयौ बलवान अति, प्रथवी सब लैर पयाल सिधायौ।
कूक करी अमरां करूणाकर, रूप वाराह धरे उठ धायौ। 
मार निसाचर दीध सुरां सुख, राख प्रथी जुग मे जस थायौ। 
'ईसरदास' की वेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥'

विभिन्न भक्तां रै दुख भंजण रा दाखला देता थकां ईसरदासजी भगवान नैं आपरी सहायता करण अर दुख भंजण री अरदास करी है।
सवैया भाव, भाषा अर अर्थ व्यंजना री दीठ सूं सरस अर सजौरा है। जिणां रै आखर-आखर में भक्त हृदय री निश्चलता बोलती सुभट लखावै। आशा है आधुनिक शोधकर्ता ईसरदासजी बोगसा जेड़ै श्रेष्ठ कवि री रचवावां री खोज अर उण पर शोध कर'र ऋषि ऋण परिशोध रो काम करैला।