संत कबीर तणै हित कारण, ता घर अंबर पोट ढळायौ।

दास मलूक के बेठ्यौ भयो हर, साह तिलोक के दास रहायौ।

हुंडी सकार के दाम दिया, नरसी जन को अत तोल बधायौ।

ईसरदास की बेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥

स्रोत
  • पोथी : भक्तकवि ईसरदास बोगसा कृत सवैया ,
  • सिरजक : डॉ.शक्तिदान कविया ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : विश्वम्भरा पत्रिका, प्रकाशन स्थल-बीकानेर
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