भूख घणी रिवदास तहाँ, हर पारस ले करता घर आयौ।

पारस तौ जिन नांह लियौ, तब पंच मांहोर नितोनित पायौ।

ऐसे दयाल उधार हरी, विन जाच हि दास को रोर मिटायौ।

ईसरदास की बेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥

स्रोत
  • पोथी : भक्तकवि ईसरदास बोगसा कृत सवैया ,
  • सिरजक : डॉ.शक्तिदान कविया ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : विश्वम्भरा पत्रिका, प्रकाशन स्थल-बीकानेर
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