देव अलेख की सेव करे नित, और नहीं काहू देव को माना।

तीरथ व्रत देवी देहुरा, हेत निरंजन सौ उर ठाना।

जे कर्ता घटधारी कहाये जु, ताहि नहीं चित्त अंतर आना।

हो छीतर दादु मिल्या जु निरंजन, शंकर शेष धरै जिस ध्याना॥

स्रोत
  • पोथी : पंचामृत ,
  • सिरजक : छीतरदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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