देव अलेख की सेव करे नित, और नहीं काहू देव को माना।
तीरथ व्रत न देवी न देहुरा, हेत निरंजन सौ उर ठाना।
जे कर्ता घटधारी कहाये जु, ताहि नहीं चित्त अंतर आना।
हो छीतर दादु मिल्या जु निरंजन, शंकर शेष धरै जिस ध्याना॥