ग्राह कबंद को पार किये, खरदूखर स, प्रम जोत मिलायौ।
गोतम नार सिला तन धार, पंगारज झार के दुक्ख मिटायौ।
दुक्ख अनेक कुं तार लिये, सिव सेस विरंच हु पार न पायौ।
ईसरदास की बेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥