ब्रहम ही ज्ञान रु ब्रह्म ही ध्यान, रु ब्रह्म ही भगति करी दिन राती।
ब्रह्म ही राते रु ब्रह्म ही माते रु, ब्रह्म ही गाय भये ब्रह्म जाती।
ब्रह्म ही सेवा रु ब्रह्म ही पूजा रु, ब्रह्म ही पंच चढ़ाई जु पाती।
हो छीतर दादु भज्या निज ब्रह्म जु, और तजि सब दूर भराती॥