ईसरदास भाद्रेस प्रकास, भये सुख रास हरीरस गायौ।
ताह की लाज रखी ब्रजराज, कियौ सिध काज सु क्रन्न जीवायौ।
गौड़ सांगौ फिर होय सजीवन, साद सुनावत धाय मिलायौ।
ईसरदास की बेर दयानिध, नींद लगी कन आळस आयौ॥