आइ मिलैं गुरु दादू कौं जे जन, ते जन जानि पारंगत कीन्हे।

पाप रु ताप उड़ाई सबै भ्रम ज्ञान, सुनाइ रु सोधे जु सीन्हे॥

रंक रिवाज किये जग में पुजि, भाव भगति भंडार जु दीन्हे।

हो छीतर नीच तैं ऊंच किये जिव, दादुदयाल के जे रंग भीन्हे॥

स्रोत
  • पोथी : पंचामृत ,
  • सिरजक : छीतरदास ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा,दादू महाविद्यालय मोती डूंगरी रोड़, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
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