लागी जिणरै लाय, उणरो जी जाणै असल।
औरां रै किम आय, चित में वो दुख, चकरिया॥
भावार्थ:- हे चकरिया, जिसके आग लगी हो अर्थात् विपत्ति आई हो, वास्तव में (उसकी पीड़ा) उसका जी ही जानता है (उसी को उसका अनुभव होता है) । दूसरों के मन में वह दुख और उसकी पीड़ा) कैसे आ सकती है?