सब रूठै संसार, रूठै ना जो रामजी।
बाल न हुवै बिगार, चित में लिख लै चकरिया॥
भावार्थ:- हे चकरिया, चाहे सारा संसार रुष्ट हो जाए (विरुद्ध हो जाए), किंतु यदि राम न रूठे, तो तुम्हारा बाल बराबर भी बिगाड़ नहीं हो सकता (बाल भी बाँका नहीं हो सकता) —यह मन में लिख ले (निश्चित मान ले) ।