वीसळदे वाळीह, मत कोई कीजौ मांनवी।

भेळी कर भाळीह, मांण जांणी मोतिया॥

हे मोतिया! वीसलदेव जैसी करनी कोई भी मनुष्य नहीं करे। उसने जीवन भर धन-सम्पति संचित कर केवल उसे देखा ही, उसका उपभोग करना नहीं जाना।

स्रोत
  • पोथी : मोतिया रा सोरठा ,
  • सिरजक : रायसिंह सांदू ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : श्री कृष्ण-रुक्मिणी प्रकाशन, जोधपुर
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