सूमां रै घर सोय, हेम तणौ भाखर हुवै।

काज आवै कोय, मिनखां बीजा, मोतिया॥

हे मोतिया! यदि कृपण व्यक्ति के घर सोने का पर्वत भी हो, तो भी वह दूसरे मनुष्यों के कोई काम नही आता। कंजूस किसी को कुछ देता ही नहीं है।

स्रोत
  • पोथी : मोतिया रा सोरठा ,
  • सिरजक : रायसिंह सांदू ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : श्री कृष्ण-रुक्मिणी प्रकाशन, जोधपुर
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