नहिं विद्या धन, भान, नहिं कुछ गुण, बळ, नम्रता।

इण पर फिर अभिमान, चालै किण विध, चकरिया॥

हे चकरिया, जिस व्यक्ति के पास विद्या, धन, ज्ञान हो और कुछ गुण, शक्ति तथा नम्रता ही हो; इस पर भी (इतनी कमियों के होते हुए) वह अभिमान करे, तो यह किस प्रकार चलेगा अर्थात उसका मिथ्या अभिमान चूर-चूर हो जाएगा, नहीं ठहरने वाला।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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