भली बुरी जो बात, होणी थी सो हो गई।

रोज़ वही दिन रात, चरचा खोटी, चकरिया॥

भावार्थ :- हे चकरिया, अच्छी अथवा बुरी जो भी बात होनी थी, वह तो हो गई। अब हमेशा रात-दिन उस पर निरंतर विचार (चक-चक) करते ही रहना व्यर्थ है (बुरी बात है)

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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