कासूं काज करेह, सिंधुर बाधा सांकळां।

भगवत पेट भरेह, मण नित चहियै मोतिया॥

हे मोतिया! मोटी-मोटी मजबूत जंजीरों से गजशाला में बँधे हुए हाथी अपनी उदरपूर्ति के लिए कौन-सा कार्य करते हैं? परन्तु परमात्मा इनका भी ध्यान रखते हुए इनकी भी क्षुधा शांत करते हैं, जिन्हें मण भर जितना नित्यप्रती खाने के लिए चाहिए उतना प्रदान करते हैं। अर्थात् प्रभु सभी के लिए प्रबन्ध करते है।

स्रोत
  • पोथी : मोतिया रा सोरठा ,
  • सिरजक : रायसिंह सांदू ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : श्री कृष्ण-रुक्मिणी प्रकाशन, जोधपुर
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