झूठो है जग जाळ,सांचो दीखे सांपरत।

भगवत माया भाळ, चकित हुवै चित चकरिया॥

भावार्थ:- हे चकरिया, यह संसार का माया-जाल असत्य है, परंतु प्रत्यक्षतः यह सत्य दिखलाई देता है। ईश्वर की आदि शक्ति की ऐसी रचना (जो वस्तुतः असत्य होकर भी सत्य भासित होती है) देखकर चित्त (आश्चर्य ) चकित होता है।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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