है तूं बाकी हेक, कर पाणप धर मूंछ कर।

दूजा सामौ देख, कायर मत हौजै नकुळ॥

हे नकुल! और सब पांडवों से तो रक्षार्थ में प्रार्थना कर चुकी। अब केवल तू ही बाकि बचा है। तू वीर क्षत्रिय की तरह अपनी मूंछ पर हाथ रख और पराक्रम दिखला। अपने दूसरे भाइयों की देखा देखी तू भी कायर मत हो जाना।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय (द्रौपदी-विनय) ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर
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