पति गंध्रप हे पाँच, धरतां पग धूजै धरा।
आवै लाज न आँच, धर नख सूं कुचरै धवळ॥
भावार्थ:- गन्धर्व तुल्य मेरे पाँच पति है जिनके पैर रखने से पृथ्वी भी कांपने लगती है, किन्तु बड़े दु:ख और आश्चर्य की बात है कि ये वीर अपने नखों से पृथ्वी को कुरेद रहे हैं, इन्हें लज्जा आती है, क्रोध नहीं आता। यह लज्जा का प्रसंग नहीं, इस अवसर पर तो इनके दिल में आग लग जानी चाहिए थी।