मूरख रख रे मून, रो घर-घर मत रोवणा।

चाँच दई सो चून, चटपट देसी, चकरिया॥

हे चकरिया, औरों के घर-घर जाकर अपना दुखड़ा मत रो। हे मूर्ख, मौन धारण कर ले। जिस परमात्मा ने चोंच दी है, वह भोजन भी देगा।

स्रोत
  • पोथी : चकरिये की चहक ,
  • सिरजक : साह मोहनराज ,
  • संपादक : भगवतीलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार
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