बदल्या मिनखां भाव, बिसवास थारो वळे।

एकण फेरूं आव, राह बतावरण रमजी॥

धरम कमावै धांन, मिनरां में भरमाय मुत।

धरप नुंवां नित धांन, राम नाम रा रामजी॥

हा नेही तो हूंत, संतोखी रहिया सदा

बै आखा आज अछूत, रुळ्या बापड़ा रामजी॥

देस भगत दोखीह, सोखी आज सुवारथी।

अब व्हैगी ओखीह, रहणी इज्जत रामजी॥

हुयगा सै हुक्काम, मिळ अंगरेजां हू मुरख।

आज दुख्यारण आम, रैत बापड़ी रामजी॥

रियो सियो रूजगार, अंगरेजां खोस्यो अठै।

भूखी किण विद भार, रैयत झालै रामजी॥

जोवूं जद जगतीह, सीख मन सूं सांपजै।

भूखां नै भगतीह, रजपूती री रामजी॥

किवता नै गिण कार, राजावां संग कवि रळ्या।

गिणिया गिया गुंवार, रिया सिया म्हे रामजी॥

उकतां घण अणमोल, अलंकार जाणुं अवस।

सखरा सबद सतोल, रैत जांणे रामजी॥

जोसीला सै जोध, आळ्स बस व्हैगा अधम।

(इण) अमल बिगाड़ी ओध, रयी सयी सा रामजी॥

भड़ हुयग्या भैभीत, राज घोड़ा सूं रहै।

निरपत करण नचीत, रोकड़ ढालां रामजी॥

घरकां पर कर घात, तरवारां सूंतै तुरत।

बीरोटण री बात, रयी इणी में रामजी॥

सजा मुखमली सेज, नर सूवै हुय हुय निसंक।

बै कांटा रा बेज, रै क्यूं जांणै रामजी॥

जग नहं ज्यांरी ज्यास, उण जूंझारा ऊपरै।

उदास लख अतियास, रुकैन आंसू रामजी॥

मुगळां खो निज मत्त, सहर बिगाड्या सांतरा।

गांवारी गत्त, रंगरैजां की रामजी॥

आज संगढंग ओह, म्हैलां जिम घण मंजलो।

उपरोथळी असोह, (ज्यामै) रूळी झूंपड्यां रामजी॥

मिळ घण बूंदां मेह समदर बण खोवै सता।

आछो संग ढंग एह, रहै भेद है रामजी॥

पेखूं निजर पसार, सुण वाळो दीसै सच।

कूं किणनै किरतार, राज बिवां हे रामजी॥

समज बात आसार, सवरी ज्यूं करस्यां सबर।

(पण) करिये कोल करार, रहिये आयो रामजी॥

स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य रा निर्माता: शंकरदान सामौर ,
  • सिरजक : शंकरदान सामौर ,
  • संपादक : भंवरसिंह सामौर ,
  • प्रकाशक : केंद्रीय साहित्य अकादमी