अबळा बाळक एक अरज करूं ऊभी अठै।

टाबर ध्रुव री टेक, तैं राखी वसुदेव तण॥

भावार्थ:- अबला और बालक तो एक समान होते है, मैं यहाँ खड़ी हुई आपसे प्रार्थना कर रही हूँ। हे वसुदेव के पुत्र! बालक ध्रूव की टेक तूने ही रखी थी। ध्वनि यह है मैं भी तो अबला हूँ, मेरी भी पुकार सून।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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