आगै भूप अनेक, खप्पाणा रिण खेत में।

टींटोड़ी री टेक, सखरी राखी सांवरा॥

भावार्थ:- भूतकाल में बहुत से राजा युद्ध क्षेत्र में खप गये। किन्तु हे सांवरे! टिट्टिभ की टेक की तूने अच्छी रक्षा की।

स्रोत
  • पोथी : द्रौपदी-विनय अथवा करुण-बहत्तरी ,
  • सिरजक : रामनाथ कविया ,
  • संपादक : कन्हैयालाल सहल ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.)
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