तब हरि हम कूँ जांणैंगे, जांणैंगे हरि जांणैंगे।
मात पिता परिवार सकल तजि, सबसूँ उलटी तांणैंगे।
हरि है साच और सब झूठा, वा हरिसूँ वाणिक बाणैंगे॥
आंन दसा सूँ जब मन थाक्या, करम भरम संगि नारंणैंगे।
राम रसाइण का मतिवाला, आदू प्रीति पिछांणैंगे॥
सौकणि उलटि सखी जब हुँहिगी, उलटी नदी चलाएँगे।
पारा बांधि प्रेम रस पीया, राम-रोम रुचि माणैंगे॥
जन हरिदास सौ सा सब मांगा, राम रसाइण पीवैंगे।
आन सकल सुख विष भरि देख्या, हरि सम्रथ भजि जीवैंगे॥