रे चित चिंता जिनि करे, हरि चिंता करसी।

भांडा घडि मुह्डा किया, सोई भलैं भरसी॥

जठर आगनि मैं जीव की, जिनि करी संभाला।

अब नाऊँ नांहि करे, दीन दयाला॥

आगाही आगा लगै, यों करता आया।

भुवंग पिटारां मांहि था भख मारग पाया॥

खूहण खपी अठारहूँ भारथ बहु तेरा।

अंडा राष्या घंट दे, सो साहिब मेरा॥

सुंरजाम तिहुँ लोक का ताकै करि छाँड्या।

सो मांहे छिटकाइसी 'बखने' मुख मांड्या॥

स्रोत
  • पोथी : बखना जी और उनकी बाणी ,
  • सिरजक : बखना जी ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : श्री लक्ष्मीराम ट्रस्ट, जयपुर ,
  • संस्करण : प्रथम
जुड़्योड़ा विसै