राम रस भीजगी मैं भूलगी संसार।
गुरु मेहर करदी जोर री, हो गई भवपार॥
दुख दरद सगला मेटिया, सुख सागर वाली धार।
आदि अंत नांही आविया, ऐड़ा है किरतार।
सतचित आनंद रूप है, देख्या नज़र पसार।
दूजा नज़र नांही आविया, लिया हिरदे मांहि धार।
नांहि नेड़ा नांहि दूर है, ऐड़ा देख्या नूर।
अंदर बाहर एक सा, व्यापक है भरपूर॥
फूली भूली जगत ने, फिरगी चारों ओर।
निज रूप मांहि डूबगी, जहाँ और ना छोर॥