भाइयां सिमरण करो सवाया।

प्रेम बिना सायब नां मिलसी, झूठा गोता खाया॥

किण कारण अठे थे आया, उणरी निगे कराया।

माया तो कोरी छाया है, ईश्वर खेल खेलाया॥

करमां सूं बंध्योड़ा थे तो, आया गिया जाया।

सिमरण करलो राम रा थे, राम मांहि समाया॥

राम भजन सूं कटे चौरासी, सतलोक में थाया।

फूली रिझावे राम ने जद, बेड़ा पार लगाया॥

स्रोत
  • पोथी : जाटों की गौरव गाथा ,
  • सिरजक : फूलीबाई ,
  • संपादक : प्रो. पेमाराम, डॉ. विक्रमादित्य ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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