सब घट मांहि राम है, रीता घट ना कोय।

धिन्न-धिन्न है उण घट री, जिणमें परगट होय॥

पाणी सरवर एक है, पणिहारी अनेक।

न्यारे-न्यारे बरतनों में, पाणी एक का एक॥

पत सूं रहवे पृथ्वी, पत सूं होवे दिन-रात।

पत सूं चालो सब जणां, लांबा होसी हात॥

काम, क्रोध, मद, लोभ सब, अंतर शत्रु होय।

एक मित्र है रामजी, उणने लो थे जोय॥

सुख-दुख बाहर है नहीं, भीतर ही लो जाण।

फूली भीतर रामजी, जिणरी करो पिछाण॥

स्रोत
  • पोथी : जाटों की गौरव गाथा ,
  • सिरजक : फूलीबाई ,
  • संपादक : प्रो. पेमाराम, डॉ. विक्रमादित्य ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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