राम रस ऐसा रे, अमली बिणि पिया जाइ।

सोफी को पीवै नहीं रे, कुपछि पड्या सब कोइ।

आरति सूँ अमली पीवै, पी मतिवाला होइ॥

सोफी सब उलटा पड्या रे, अमली रह्या लुभाइ।

भँवर गुफा का घाट में, उनमन सूँ मन लाई॥

अमली सब संसार है रे, रह्या विषै मन लाइ।

जन हरीदास हरि रस पिया, दूजा कछु सोहाइ॥

स्रोत
  • पोथी : महाराज हरिदासजी की वाणी ,
  • सिरजक : हरिदास निरंजनी ,
  • संपादक : मंगलदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : निखिल भारतीय निरंजनी महासभा ,
  • संस्करण : प्रथम
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