लेखा देना रे धनी का लेखा देना रे॥
रागी राग उचारहीं गावत मुख बैना रै।
हस्ती घोड़े पालकी छाँड़ी सब सैना रे॥
रोकड़ ढकी धरी रही सब ज़ेवर गहना रे।
फूँक दिया मैदान में कुछ लेन न देना रे॥
मुगदर मारै सीस में जम किंकर दहना रे॥
फूला सो कुम्हलात है चुनिया सो ढहना रे।
चित्रगुप्त लेखा लिया जब कागद पहना रे॥
चलिये अब दीवान में सतगुरु से कहना रे।
मुसकिल से आसान हो ज्यू बहुर मरै ना रै॥
बोया अपना सब लुनै पकरैं हम अहना रे।
चरन कमल के ध्यान से छूटै सब फैना रे॥
परानंदनी संग है जाके कमधैना रे।
ग़रीबदास फिर आवही जो अजर जरै ना रे॥