जब मन होवे माया का, तब माया ही जान।

जब मन होवे राम का, तब होय राम समान॥

कभी ना करिये कामना, भजिये राम निष्काम।

ऐसी जिनकी भावना, बैकुंठा मांहि धाम॥

जग कारण सगुण है, नहीं तो निर्गुण रूप।

सगुण पहलां जाणलो, पछे निरंजन रूप॥

प्रितम को पतियां लिखूँ, जो होवे परदेश।

मेरा पिव हिरदे बसे, क्या लिखूँ संदेस॥

प्रेम छवि नैणा बसी, दूजी आवे ना दाय।

हिरदे प्रितम रम रह्या, दूजा कहाँ समाय॥

कहि ना जावे मुख सूं, राम प्रेम री बात।

पूर्ण चराचर जगत में, राम ही राम दरसात॥

खट पट सगली मेट दो, निर्भे करलो मन।

वृत्ति ब्रह्म में जोड़ लो, मुक्ति असली धन॥

राम-राम सब ही कहें, नुगरा सुगरा तात।

बिना प्रेम रीझे नहीं, फूली के मन राम॥

स्रोत
  • पोथी : जाटों की गौरव गाथा ,
  • सिरजक : फूलीबाई ,
  • संपादक : प्रो. पेमाराम, डॉ. विक्रमादित्य ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम
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